राष्ट्रमंडल खेलोँ की सफलता पर जो संदेह जताया जा रहा था और आयोजन समिति
की कार्य कुशलता व क्षमताओँ को लेकर जो भी कयास लगाए जा रहे थे वे सब
बीते दौर की बातोँ से लग रहे हैँ। आखिरकार साबित हो गया कि "दिल्ली मेँ
है दम।" भारत ने न केवल खेलोँ का भव्य व यादगार उद्घाटन समारोह किया
बल्कि चाक-चौबंद सुरक्षा, समुचित सुविधाओँ व बेहतरीन मेहमान नवाज़ी की एक
नज़ीर पेश की। इससे इतना तो स्पष्ट हो गया कि हममेँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
की समझ, तकनीक व भव्यता के साथ-2 आधुनिकता भी है।
इतना ही नहीँ, भारतीय खिलाड़ियोँ ने जिस दमखम व माद्दे के साथ पदकोँ
की बारिश की उसमेँ पूरा देश सराबोर हो गया और वो अभिजात्य वर्गीय जो अब
तक खेल को सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रखते थे वे भी इस धमक से इन खेलोँ का
अर्थ भली-भाँति समझ गए होँगे।
अर्थ साफ है कि भारत अब खेलोँ के महाशक्ति समूह मेँ प्रवेश कर चुका
है। इन स्पर्धाओँ इंग्लैण्ड, कनाडा, द. अफ्रीका और मलेशिया जैसे वो
दिग्गज देश भी थे जिन्हेँ भारत ने बुरी तरह पछाड़ा है।हालांकि इनमेँ
अमेरिका,चीन और जापान जैसी महाशक्तियाँ नहीँ थीँ इसलिए अगली बड़ी
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओँ मेँ इतने विस्फोटक प्रदर्शन की उम्मीद
नहीँ रखी जा सकती तो भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि भारत का प्रदर्शन सभी
खेलोँ मेँ बेहतर हुआ है। इक्का-दुक्का पराजयोँ को छोड़ देँ तो सभी
खिलाड़ियोँ ने अपना बेहतर प्रदर्शन किया। और जिस तरह से इनामोँ तथा
खिताबोँ की बारिश हुई है और जनमानस का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है उससे इन
खेलोँ मेँ और सुधार होने के आसार हैँ।
इस संबंध मेँ दबी जुबान मेँ एक और बहस का मुद्दा बनने जा रहा है कि
अपनी जमीन पर खेलते हुए भारत ऐसा कर पाया। मगर कहना पड़ेगा कि यह बचकाना
सवाल है। माना जा सकता है खिलाड़ी को मनोवैज्ञानिक शक्ति मिलती है परन्तु
इससे मूल प्रदर्शन को केवल निखार मिलता है, वह प्रदर्शन एकदम से बनाया
नहीँ जा सकता। और फिर यह भी नहीँ भूलना चाहिए कि अपने दर्शकोँ के बीच
खेलने का दबाव भी होता है। टेबल-टेनिस मेँ शरत कमल, टेनिस फाइनल मेँ
सानिया मिर्ज़ा हाकी फाइनल मेँ भारतीय टीम इसी दबाव का शिकार हुए।
कुल मिलाकर भयमुक्त, पक्षपात व विवाद रहित, सामंजस्य पूर्ण व
उत्कृष्ट खेलोँ का सफल आयोजन करके भारत ने विश्व बिरादरी मेँ अपनी विनम्र
व गंभीर छवि को और पुख्ता किया एवं वाहवाही लूटते-2 अपनी ताकत का संकेत
भी दे दिया।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'
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