Haleem

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मंगलवार, 2 नवंबर 2010

इन्तिहाँ हो गई.......

"कानपुर मेँ कक्षा 6 की एक मासूम बच्ची के साथ उस के स्कूल मेँ ही


बलात्कार हुआ। वह भी स्कूल के प्रबंधक के बेटे के द्वारा। विद्या का

मंदिर माने जाने वाले पवित्र स्थान मेँ वहशीपन की सारी सीमाएँ टूट गईँ।

बच्ची खून से लथपथ होकर चिल्लाती रही और दरिँदा उसे भोगता रहा। इतने पर

भी उसकी हवस शांत नहीं हुई तो इलेक्ट्रिक ड्रिल से उसके यौनांगोँ को

क्षत-विक्षत कर दिया। 11 साल की उस मासूम के दर्द की भीषणता का अंदाजा आप

इसी बात हैँ कि उसके उत्सर्जन अंगोँ के साथ प्रजनन अंग तक क्षतिग्रस्त हो

गए जिसे देखकर डाक्टर तक दहशत मेँ आ गए। इतना सब होने के बाद खून से लथपथ

बच्ची को उसकी कक्षा मेँ छोड़ दिया गया जहाँ से किसी ने उसे उसके घर पर

छोड़ा। जब पड़ोसियोँ ने उसकी माँ जो किसी शापिंग माल मेँ मामूली नौकरी करती

थी को सूचित किया। वे लोग उसे लेकर अस्पताल पहुँचे जहाँ उसने दम तोड़

दिया।"



"क्या सोच रहे हैँ आप, यही न कि ऐसे बर्बर पापी के साथ क्या सलूक

किया जाना चाहिए? पर ये त्रासद प्रकरण अभी खत्म नहीँ हुआ है। हमारी

विलक्षण साहसी पुलिस की भूमिका देखिए। जिला प्रशासन ने पोस्टमार्टम के

लिए 4 डाक्टरोँ का एक विशेष पैनल बनाया ताकि निष्पक्ष जाँच हो सके। तब

जिस हत्यारे की उपर की चमड़ी उधेड़कर उसे सीँखचोँ मेँ घुसेड़ देना चाहिए था

उससे मोटी रकम लेकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलवाने के लिए डाक्टरोँ को

रिश्वत देने पहुँच गए। जब बात नहीँ बनी तो उन्हेँ धमकाया भी पर डाक्टरोँ

ने सही रिपोर्ट दी। इस पर रिपोर्ट की व्याख्या शुरू कर दी कि जाँच मेँ

सीमन नहीँ पाया गया। अरे इतना खून बह जाने के बाद सीमन क्या रखा रहेगा?

कहने लगे कि बच्ची पहले से गर्भवती थी। जरा सोचिए.....।

पुलिस की मनमानी यहीँ समाप्त नहीँ हुई। प्रदर्शन कर रहे

अभिभावकोँ व परिजनोँ की पिटाई कर दी। यहाँ तक कि उस बच्ची की माँ को भी

लाठियोँ से बुरी तरह पीटा। और देखिए इस प्रकरण को सुर्खियोँ मेँ लाने

वाले अखबार हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक व पत्रकारोँ को झूठा केस लगा

देने की धमकी दी। फिर भी खबरेँ नहीँ थमीँ तो कार्यालय मेँ तोड़फोड़ कर

कर्मचारियोँ की पिटाई कर दी जिसकी पूरे मीडिया जगत ने निँदा की और विरोध

किया। तब समाज के कुछ सक्षम तथा जिम्मेदार लोगोँ के आगे आने तथा जनाक्रोश

को देखते हुए दबाव मेँ आकर अपराधी को गिरफ्तार किया।"



क्या इस पूरे प्रकरण से नहीँ लगता कि पुलिस का नंगनाच इन दिनोँ

ज्यादा बढ़ गया है? यह अकेला कांड नहीँ है, ऐसे जाने कितने प्रकरण हैँ जो

जनता जानती है। कितनी फर्जी मुठभेड़ें दिखाकर अपनी बहादुरी का दम भरने

वाली पुलिस ने यह मामला इसलिए दबाने की कोशिश की क्योँकि अपराधी से रकम

का नियमित बंदोबस्त था। कोई मरे कोई मल्हार गाए। क्या इन पुलिसियोँ के घर

मेँ बेटियाँ नहीँ हैँ या ये उन्हेँ भी भोगते हैँ? हाय रे लोकतंत्र! और

हाय रे निकम्मी पुलिस! हमारे महापुरुष अगर आज होते तो शर्म से मर गए

होते। इस मामले मेँ जितना बड़ा गुनाह उस अपराधी ने किया है उससे भी बड़ी

गुनहगार पुलिस है।



इस संदर्भ मेँ मीडिया और खासतौर पर हिन्दुस्तान बधाई का पात्र है

जिसने इस पूरे प्रकरण पर सच की आवाज़ बुलंद की और जनजागरण किया। चूँकि

जनता की आवाज़ से ही पुलिस मजबूर हुई इसलिए मैँ उन भले मानसोँ के साथ ही

हिन्दुस्तान की पूरी यूनिट को साधुवाद देता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि

वे आगे भी ऐसे ही निर्भीक पत्रकारिता करते रहेँगे। यह प्रकरण तो एक बारगी

पत्र के लिए खुद की भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। हालाँकि

हिन्दुस्तान इसी बात के लिए जाना जाता है तो भी मैँ दोहराना चाहूँगा कि

वे अपनी इस कार्यशैली को बनाए रखेँ। मैँ कई वर्षोँ से हिन्दुस्तान का

नियमित पाठक हूँ और इसी को वरीयता देता हूँ क्योँकि यह पत्र मीडिया के

असली गुणधर्मोँ का संवाहक है। मैँने इसे चुना और मुझे अपने चुनाव पर गर्व

है। सभी को इसे प्रयोग मेँ लाना चाहिए।



अंत मेँ एक अपील उस बच्ची के लिए जिसने मुझे द्रवित कर यह सब

लिखने को प्रेरित किया। आपसे गुज़ारिश है कि इस प्रकरण तथा संदेश को जमकर

प्रसारित करेँ ताकि शीर्ष स्तर तक इसकी गूँज पहुँचे और उचित कार्यवाही

हो। उस गुनहगार के लिए ऐसी सज़ा तजवीज़ हो जो मौत से भी बदतर हो, फाँसी तो

छोटी सज़ा है। जिसे सुनकर ही शैतान तक की रूह काँप जाए और भविष्य मेँ कोई

ऐसी घिनौनी करतूत करने के बारे मेँ सोचे भी न। आपके एक क्लिक से किसी को

इंसाफ और आत्मा को शांति मिल सकती है।

-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

संपन्न हुए खेल

राष्ट्रमंडल खेलोँ की सफलता पर जो संदेह जताया जा रहा था और आयोजन समिति
की कार्य कुशलता व क्षमताओँ को लेकर जो भी कयास लगाए जा रहे थे वे सब
बीते दौर की बातोँ से लग रहे हैँ। आखिरकार साबित हो गया कि "दिल्ली मेँ
है दम।" भारत ने न केवल खेलोँ का भव्य व यादगार उद्घाटन समारोह किया
बल्कि चाक-चौबंद सुरक्षा, समुचित सुविधाओँ व बेहतरीन मेहमान नवाज़ी की एक
नज़ीर पेश की। इससे इतना तो स्पष्ट हो गया कि हममेँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
की समझ, तकनीक व भव्यता के साथ-2 आधुनिकता भी है।
     इतना ही नहीँ, भारतीय खिलाड़ियोँ ने जिस दमखम व माद्दे के साथ पदकोँ
की बारिश की उसमेँ पूरा देश सराबोर हो गया और वो अभिजात्य वर्गीय जो अब
तक खेल को सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रखते थे वे भी इस धमक से इन खेलोँ का
अर्थ भली-भाँति समझ गए होँगे।
     अर्थ साफ है कि भारत अब खेलोँ के महाशक्ति समूह मेँ प्रवेश कर चुका
है। इन स्पर्धाओँ इंग्लैण्ड, कनाडा, द. अफ्रीका और मलेशिया जैसे वो
दिग्गज देश भी थे जिन्हेँ भारत ने बुरी तरह पछाड़ा है।हालांकि इनमेँ
अमेरिका,चीन और जापान जैसी महाशक्तियाँ नहीँ थीँ इसलिए अगली बड़ी
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओँ मेँ इतने विस्फोटक प्रदर्शन की उम्मीद
नहीँ रखी जा सकती तो भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि भारत का प्रदर्शन सभी
खेलोँ मेँ बेहतर हुआ है। इक्का-दुक्का पराजयोँ को छोड़ देँ तो सभी
खिलाड़ियोँ ने अपना बेहतर प्रदर्शन किया। और जिस तरह से इनामोँ तथा
खिताबोँ की बारिश हुई है और जनमानस का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है उससे इन
खेलोँ मेँ और सुधार होने के आसार हैँ।
     इस संबंध मेँ दबी जुबान मेँ एक और बहस का मुद्दा बनने जा रहा है कि
अपनी जमीन पर खेलते हुए भारत ऐसा कर पाया। मगर कहना पड़ेगा कि यह बचकाना
सवाल है। माना जा सकता है खिलाड़ी को मनोवैज्ञानिक शक्ति मिलती है परन्तु
इससे मूल प्रदर्शन को केवल निखार मिलता है, वह प्रदर्शन एकदम से बनाया
नहीँ जा सकता। और फिर यह भी नहीँ भूलना चाहिए कि अपने दर्शकोँ के बीच
खेलने का दबाव भी होता है। टेबल-टेनिस मेँ शरत कमल, टेनिस फाइनल मेँ
सानिया मिर्ज़ा हाकी फाइनल मेँ भारतीय टीम इसी दबाव का शिकार हुए।
     कुल मिलाकर भयमुक्त, पक्षपात व विवाद रहित, सामंजस्य पूर्ण व
उत्कृष्ट खेलोँ का सफल आयोजन करके भारत ने विश्व बिरादरी मेँ अपनी विनम्र
व गंभीर छवि को और पुख्ता किया एवं वाहवाही लूटते-2 अपनी ताकत का संकेत
भी दे दिया।
-निषेध कुमार कटियार 'हलीम'

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

देश मेँ आतंकवाद-लचर सरकार, ग़ुस्ताख़ पाकिस्तान, आवाम के ग़द्दार.
देश मेँ आतंकवाद-लचर सरकार, ग़ुस्ताख़ पाकिस्तान, आवाम के ग़द्दार.